कहीं यह पैनिक अटैक (Panic attack) तो नहीं?
कहीं यह पैनिक अटैक तो नहीं?
कहीं यह पैनिक अटैक (Panic attack) तो नहीं?
क्या आपके करीबी, परिचितों या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप अचानक से इतने डर गये कि आपका पूरा शरीर ढेर सारे रोगों से ग्रस्त हो गया; जैसे शरीर से आपके प्राण निकलने लगे हों, पूरे शरीर में करंट सा दौडऩे लगा, दिल जोर-जोर से धड़कने लगा हो, श्वास लेना दुभर हो गया और मरने तक का डर लगने लगा हो? यदि हां, तो यह पैनिक अटैक था।
जी हां! पैनिक अटैक (Panic attack) तीव्र भय या जबरदस्त घबराहट के दौरे को कहते हैं। बारंबार पडऩे वाले अटैक को पैनिक डिसार्डर कहते हैं। ऐसे दौरे अचानक ही पड़ते हैं और प्राय: 15 से 30 मिनट में ख़त्म भी हो जाते हैं। परंतु ये कभी-कभी साइक्लिक या घंटों जारी रहने वाले भी हो सकते हैं। इसमें कोई बड़ा खतरा ना होने के बावजू़द असाधारण शारीरिक लक्षणों के कारण पीडि़त अचानक से आतंकित या भयग्रस्त हो जाता है। कभी यह हल्का होता है, तो कभी यह पैनिक डिसार्डर या सोशल फोबिया जैसा लगता है। यह ऐसा डिसार्डर है, जो इंसान के जीवन का सबसे कष्टप्रद अनुभव होता है और पहले दौरे में ही हार्ट अटैक या नर्वस ब्रेकडाउन का डर समा जाता है। परंतु ये आमतौर पर मानसिक विकार के संकेत नहीं होते।
पैनिक अटैक (Panic Attack) के लक्षण क्या होते हैं ?
पैनिक अटैक (Panic attack) एक सैन्सिटिव नर्वस सिस्टम का रिएक्शन होता है। इसके प्रमुख लक्षण अक्सर सांसें छोटी होना व सीने में दर्द महसूस होना है, जिस कारण पीडि़त इसे दिल के दौरे का संकेत समझ लेता हैं। ऐसे रोगी को एमरजेंसी कक्ष में इलाज़ की ज़रूरत होती है। डीएसम (नैदानिक मानदंड) अनुसार, पैनिक अटैक तीव्र भय या बेचैनी की ऐसी अस्थायी अवधि है, जिसमें निम्न-वर्णित चार या ज्यादा लक्षण अचानक से महसूस हों और 10-15 मिनट के अंदर अपने चरम तक पहुंच जाएं, जैसे :
- अत्यंत तीव्र घबराहट;
- बढ़ी हुई हृदयगति या धुकधुकी;
- चिल्स/कंपन व हॉट फ्रलैशेज (बेहद पसीना आना);
- सुन्न या झुनझुनी महसूस होना;
- दम घुटना/सांस लेने में बेहद कठिनाई महसूस होना;
- सीने में दर्द, बेचैनी या जकडऩ;
- नियंत्राण खोने का भयऋ चक्कर,
- असंतुलन, कमज़ोरी या बेहोशी;
- मरने का भय;
- मांसपेशियों में तनाव;
- मिचली या पेट दर्द;
- धुंधली दृष्टि व समझ,
- भ्रम या रियेलिटी का लोप होना;
- शुन्य दिमाग लगना;
- निकल भागने की ज़रूरत महसूस होना;
- चेहरे व गर्दन के भाग में जलन महसूस होना;
- सिरदर्द नहीं, पर हां, सिर में अजब सा दबाव लगना;
- घुटनों में कमज़ोरी व
- समय बीतने का अहसास कम होना आदि हैं।
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ट्रिगर और कारण
पैनिक अटैक क्यों आता है
* जैनेटिक/आनुवंशिक:
हालांकि पारिवारिक इतिहास ना होने के बावज़ूद कई लोगों में पैनिक अटैक आ सकता है, परंतु आमतौर पर इसके पीछे पारिवारिक भूमिका मुख्य होती है। इस अटैक का दौरा अक्सर वयस्क होने की शुरुआत में पड़ता है। यह ज्यादा बुद्धिमान लोगों व महिलाओं में ज्यादा देखा गया है। जुड़वा लोगों में 31-88 प्रतिशत मामलों में यह विकार पाया गया है। ऐसे लोगों में पैनिक अटैक ज्यादा पड़ता है जिनके पेरेंटस दुनिया के बारे अत्यंत संकीर्ण द्रष्टिकोण रखते हैं। समय के साथ बढ़ता हुआ तनाव भी इसका मुख्य कारण हो सकता है।
* बायलॉजिकल कारण :
जुनुनी बाध्यकारी विकार (ओसीडी), पोस्ट-ट्रॉमैटिक तनाव, हाइपर-थायराइडिज्म, विलसंस रोग, भीतरी कान की गड़बड़ी, विटामिन बी की कमी या टेपवर्म के इनफैक्शन के कारण होने वाली कमज़ोरी व घबराहट के दौरे।
* फोबिया के रक्षात्मक प्रतिक्रिया के रूप में:
प्राय : किसी डरावनी चीज़ या परिस्थिति से सामना होने की प्रतिक्रिया के रूप में यह दौरे पडऩा, जैसे : गाड़ी चलाते समय, शॉपिंग या भीड़-भाड़ वाली जगह या सीढिय़ों/लिफ्ट आदि स्थानों पर यदि एक बार अटैक पड़ जाए तो उसमें डर समा जाता है। वह ऐसे स्थानों से बेहद कतराने लगता है व धीरे-धीरे फोबिया का शिकार हो जाता है। इसमें सांस की तकलीफ, हाईपर-वैंटिलेशन या खुद पर नियंत्रण खोने जैसा लगता है, जिस कारण बेचैनी बढ़ती व पॉजि़टिविटि कम होती जाती है। कुछ लोगों को टनेल विजऩ (सुरंग में फंसे) जैसा महसूस होता है, जो ज्यादातर रक्षात्मक रूप से रक्तप्रवाह के सिर की ओर होने की बजाए शरीर के अधिक महत्वपूर्ण हिस्सों की ओर होने के कारण होता है। ऐसे अनुभव फाइट-या-फलाइट प्रतिक्रिया के परिणाम-स्वरूप उस जगह को छोड़कर भाग जाने की तीव्र इच्छा को बढ़ा सकते हैं, जहां वह दौरा शुरु हुआ था, ताकि उसे फिर से दौरा न पड़े। यह रक्षात्मक प्रतिक्रिया शरीर में एड्रिनलिन हार्मोन बढा़कर पीडि़त को खतरों से बचाने में मदद करती है।
* हाइपरवैंटिलेशन सिंड्रोम :
छाती से सांस लेना अर्थात ज़रूरत से ज्यादा सांस लेने से ऑक्सीजन से ज्यादा कार्बन-डाइऑक्साईड बाहर निकलती है। हाइपरवैंटलेशन सिंड्रोम में मुंह से सांस लेना प्रमुख होता है, जो दिल की धड़कनें बढऩे, चक्कर आने, सिर में हल्केपन आदि के लक्षणों की वजह से पैनिक अटैक को बढ़ा सकता है।
* अल्पावधि में ट्रिगर होने वाले कारण :
प्रियजन की अक्समात मृत्यु, संबंधों का टूटना, भयंकर रैगिंग, यौण-शोषण की घटनाएं, जीवन की अवस्थाओं में परिवर्तनों से जूझने में असमर्थ होना या महत्वपूर्ण बदलावों को न झेल पाना।
* मेंटेनेन्स संबन्धी कारण :
घबराहट बढ़ाने वाले माहौल, नकारात्मक चर्चा, गलत मान्यताएं, जैसे भूत-प्रेत में विश्वास, डर या दबाई हुई भावनाएं; आत्म-विश्वास की कमी;
* द्रृढ़ता की कमी :
इस विकार से पीडि़त लोगों में प्राय: संवाद करने का तरीका बहुत बेफिक्री व अनिश्चित किस्म का होता है जो ऐसे दौरों को बढ़ाने में मदद करता है।
* दवाइयां :
कभी-कभी ये दौरे एंटीबायोटिक्स के अस्थायी दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जो मरीज़ के पहली बार दवा शुरू करने पर उत्पन्न होते हैं या दवा के खत्म हो जाने पर भी जारी रह सकते हैं। ऐसे में दवा बदल देनी चाहिये। सभी एंटी-डिप्रेसंट दवाइयां बेचैनी बढ़ाने की वजह बन सकती हैं। अत: ऐसे मरीज़ों को ये दवाइयां सावधसनी से खानी चाहिये।
* शराब/दवाई या नशीली दवाएं बंद करना :
शराब और बेंजोडाइज़ेपाइन बंद करना पैनिक अटैक का मुख्य कारण बन सकता है।
* परिस्थितिजन्य घबराहट के दौरे :
रैगिंग, यौण उत्पीडऩ, बलात्कार या चाईल्ड एब्यूज़ या कार्यस्थल पर किसी और तरह से उत्पीडऩ, या अचानक भूचाल/आगजनी जैसी परिस्थिति में फंस जाना आदि ऐसे उदाहरणों में शामिल हैं।
* औषधीय ट्रिगर :
कुछ उत्तेजक रासायनिक दवाइयां पैनिक अटैक को ट्रिगर कर सकती है, जैसे कैफीन, एम्फ्रैटेमिन, शराब और कई अन्य दवाइयां। कुछ लोग ऐसी विशेष दवाओं या कैमिकल्स के प्रति अत्यंत भयभीत होते हैं। ये प्रभाव साइकोसोमेटिक होते हैं।
* पुरानी या गंभीर बीमारी :
हृदय संबंधी विकार जैसे क्यूटी सिंड्रोम व वोल्फर व्हाइट-पार्किसन सिंड्रोम के परिणामस्वरूप भी घबराहट के दौरे पड़ सकते हैं क्योंकि बेचैनी का संबंध ऐसी परिस्थितियों मे उत्पन्न होने वाली समस्याओं से होता है, जैसे दिल का दौरा या ब्रेन हैमरेज़। हार्ट पेशंट के लिये हार्ट परॉब्लम और पैनिक अटैक के बीच अंतर करना कठिन हो सकता है। ऐसे लोगों को हस्पताल में ही भर्ती करवाना पड़ता है।
* शारीरिक कारण :
पैनिक अटैक के कई लक्षण रोगी को ऐसा अहसास कराते हैं, जैसेकि उसका शरीर नाकाम हो रहा है। इसे ऐसे समझ सकते हैं- पहले इसमें कुछ उत्तेजक प्रेरणा के साथ अचानक से डर की शुरुआत होती है, जो एड्रिनलिन के स्त्राव का कारण बनता है और फाइट-या-फ्रलाइट प्रतिक्रिया को जन्म देता है, जिसमें रोगी का शरीर कठोर शारीरिक कार्यों के लिये तैयार हो जाता है, जिससे हृदयगति बढ़ जाती है (टैकीकार्डिया), सांसें तेज हो जाती हैं (हाइपर-वैंटिलेशन), जिसे छोटी-छोटी सांसों के रूप में देख सकते हैं (डिस्पनिया), पसीना निकलता है, हृदय की पकड़ कमज़ोर होने से यह काम करना बंद कर देता है। हाइपर-वैंटिलेशन के कारण फेफड़ों में और उसके बाद रक्त में कार्बन-डाइऑक्साईड के स्तर में कमी होने से रक्त में पीएच की मात्रा बदल जाती है, जो बदले में कई अन्य लक्षणों का कारण बन सकता है, जैसे, सिहरन, संवेदन-शून्यता, चक्कर आना, जलन महसूस होना, सिर में रक्त प्रवाह कम होना आदि। पैनिक अटैक ब्ल्ड शुगर को मस्तिष्क से दूर करके प्रमुख मांसपेशियों की ओर ले जाता है, जिससे कई बार रोगी अपनी सांसों को नियंत्रित करने में असमर्थ महसूस करते हैं और गहरी सांसें लेना शुरु कर देते हैं। इससे रक्त में कार्बन-डाइऑक्साईड के स्तर में कमी हो जाती है।
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कृपया ध्यान दें कि पैनिक विकार में केवल एक/दो लक्षण भी महसूस हो सकते हैं, जैसे कि पैरों में कंपन या सांस में तकलीफ होना या शरीर में एक तीव्र ताप की लहर का ऊपर की ओर बढऩा! यह एस्ट्रोजेन की कमी के कारण होने वाले हॉट फ्रलैशेज नहीं होते। पैरों में कंपन जैसे कुछ लक्षण किसी भी सामान्य अनुभूति से अलग नहीं होते, जिससे इन्हें स्पष्ट पैनिक अटैक मान लिया जाए। ऐसे अन्य लक्षणों को कई सामान्य लोगों में भी देखा गया है, जिन्हें पैनिक अटैक नहीं था। अत: सीमित पैनिक अटैक में एक ही समय में चार या अधिक शारीरिक लक्षणों का महसूस होना ज़रूरी नहीं। बिल्कुल निराधर घबराहट व तेज होती दिल की धड़कन जैसे लक्षण ही पैनिक अटैक का संकेत हो सकते हैं।
यह लाईलाज़ नहीं है : अटैक (Panic attack) पढ़ने पर तुरंत मनोविश्लेषक/साइकोथैरेपिस्ट के पास ले जाएं।
डॉ. स्वतन्त्र जैन
मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता